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अपराध

चंबल के विहड़ का ऐसा डकैत जिसके नाम से कांपते थे बड़े-बड़े जमींदार

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चंबल के बीहड़ का जब-जब नाम आता है तो सामने आतंक की दुनिया दिखाई देने लगती है वह चंबल जिसमें उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राजस्थान के नामी डकैत बागी रहा करते थे वह चंबल जहां समय के अनुसार फिरौती मांगने का धंधा जोरों पर था जो फिरौती नहीं देता उसे जान से मार दिया जाता था ऐसा ही एक चंबल में गैंग बना जिसमें लगभग डेढ़ सौ डकैत रहा करते थे डेढ़ सौ डकैतों का वह गैंग जिस गैंग के सरदार पर 80 से ज्यादा हत्या और 350 से ज्यादा अपहरण के मामले दर्ज हुए गैंग पर 12 लाख का इनाम भी रखा गया यानी कि उन दिनों में ₹1200000 एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी आज बात करेंगे हम डाकू मोहर सिंह की जो लड़का कभी पहलवान बनने की सोचता था उसे समय के हालातो ने कैसे डकैत बनने पर मजबूर कर दिया था डाकू मोहर सिंह का जन्म मध्यप्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव नगर पंचायत के बिसूली गांव मैं हुआ था पिता के पास थोड़ी जमीन ज्यादा थी उसी से पिता खेती करके अपने बच्चों का लालन-पालन कर रहे थे मोहर सिंह बचपन से ही पहलवान बनने का सपना देखते थे जैसे ही मोहर सिंह की उम्र लगभग 14 वर्ष हुई तभी मोहर सिंह के पिता की जमीन पर मोहर सिंह के चचेरे भाइयों ने कब्जा जमा लिया ऐसे में मोहर सिंह काफी आहत हुए और पुलिस के दरबार में पहुंचे लेकिन पुलिस ने भी उल्टा मोहर सिंह को ही डांट फटकार कर भगा दिया समय गुजरता गया सन 1952में जमीनी विवाद के चलते मोहर सिंह ने एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी और उसके बाद निकल गए बिहड के लिए पहले अन्य डकैतों के साथ बिहड में रहे लेकिन समय ने करवट ली और मोहर सिंह ने अपना गैंग बनाना शुरू कर दिया धीरे-धीरे मोहर सिंह की गैंग में डकैत जुड़ते चले गए और तैयार हो गया 150 डकैतों का एक सरगना जिसके सरदार बने मोहर सिंह, मोहर सिंह पर लगभग 80 से ज्यादा हत्या वह 350 के आसपास अपहरण के मामले दर्ज हो चुके थे साल 1958 से लेकर साल 1972 तक मोहर सिंह का चंबल की घाटी में एक छत्र राज हुआ करता था यह वही दौर था जब मोहर सिंह के गैंग की गोलियों की तड़ तड़ाहट से बिहड गुंज जाया करता था क्षेत्र में जो अमीर हुआ करते थे उन्होंने अपने आपको गरीब दिखाना शुरू कर दिया था क्योंकि यदि मोहर सिंह को यह पता लग जाता कि इसके पास इतना धन है तो वह उसका अपहरण कर लेता और बाद में फिरौती लेकर छोड़ करता बताया जाता है कि एक बार दिल्ली के एक व्यापारी का मोहर सिंह ने अपहरण कर लिया था और उसे 26 लाख की फिरौती लेकर वापस छोड़ा था
चम्बल से मन भर जाने के बाद मोहर सिंह को माधो सिंह ने आत्मसमर्पण की सलाह दी.मोहर सिंह अपने दोस्त माधो सिंह की बात मान गया और मोहर सिंह गुर्जर ने 14 अप्रैल 1972 को मुरैना के जौरा गांधी सेवा आश्रम में महात्मा गांधी की तस्वीर के आगे हथियार डाल आत्मसमर्पण कर दिया. मोहर सिंह ने एसएलआर, सेमी ऑटोमेटिक गन, 303 बोर की 4 राइफल, 4 एलएमज, स्टेनगन सहित बड़ी संख्या में हथियार सहित सरेंडर किया था.

मोहर सिंह समजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से बागी जीवन को छोड़कर समाज सेवा से जुड़ गया.मोहर सिंह ने कभी भी चंबल के बीहड़ की तरफ मुड़कर नहीं देखा. मोहर सिंह आत्मसमर्पण के बाद जेल भेज दिया लगभग 8 वर्ष जेल में गुजरने के बाद मोहर सिंह को 1980मे रिहा किया गया
1982 में एक फिल्म बनी ही चम्बल का डाकू इस फिल्म में मोहर सिंह ने और माधो सिंह ने खुद ही डाकू का किरदार निभाया था. खुद ने ही डाकू की एक्टिंग की थी.उसके बाद मोहर सिंह राजनीति में भी हाथ आजमाया था. मोहर सिंह 1995 से 2000 तक मेहगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर रहा था. मोहर सिंह को लोग दद्दा कहकर पुकारते थे .बीमारी के चलते दस्यु मोहर सिंह गुर्जर का 5 मई 2020 की सुबह निधन हो गया.

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