राष्ट्रीय
आजीवन कारावास काट रही आरोपी महिला को सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में पीड़िता को दोष सिद्ध करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था महिला पर आरोप था की उसने एक सह_ग्रामीण के साथ शारीरिक संबंध बनाए और गर्भधारण किया इसके बाद नवजात की हत्या कर दी गई थी
बताया जाता है कि ग्रामीण महिला ने अपने ही सह_ग्रामीण के साथ मिलकर शारीरिक संबंध बनाए जिसके बाद गर्भधारण हो गया वहीं महिला पर आरोप था कि महिला ने नवजात की हत्या कर दी थी इसके बाद छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने महिला की दोष सिद्धि मानते हुए उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा था लेकिन पीड़िता ने इस पूरे मामले के 2010 के आदेश को चुनौती दी जिसकी शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई
शीर्ष अदालत की एक पीठ ने कहा कि महिला पर बगैर किसी मजबूत सबूत के आरोप लगाना केवल इसलिए कि वह अपने गांव में अकेली रह रही थी सांस्कृतिक रूढ़ियों और लैंगिक पहचान को मजबूत करता है
कोर्ट ने आगे कहा कि यह निजता का अधिकार अनुल्लघंनय है बगैर किसी ठोस सबूत के उस पर दोष लगाया गया है और कोर्ट ने कहा कि डबरी में पाए गए मृत बच्चे के बीच महिला का किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध स्थापित नहीं किया जा सका आगे कोर्ट ने कहा कि केवल यह तथ्य बनाया गया कि वह अकेली रहने वाली महिला थी और गर्भवती थी
आगे कोर्ट ने कहा कि महिला कानून के दायरे में रहकर यह निर्णय लें की उसको बच्चा पैदा करना है या नहीं यह उसकी स्वयं की मर्जी पर निर्भर करता है किसी भी गवाह ने अपील करता को मृत बच्चों को डबरी में फेंकते हुए नहीं देखा है इससे अभियोजन पक्ष द्वारा रिश्ते का कोई भी मजबूत सबूत सामने पेश नहीं किया गया है दोषी के बयान पर संदेह करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया वही कहा गया कि पूरे मामले को देखते हुए पाया कि दोषी अपील करता के खिलाफ दर्ज दोषसिद्धी पूरी तरह से केवल अनुमान पर आधारित है