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Bhakti

शीश के दानी हारे के सहारे बाबा खाटू श्याम जी की सच्ची कहानी

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हारे का सहारा कहे जाने वाले खाटू श्याम जी को कलयुग का भगवान माना जाता है इन दिनों खाटू नगरी में प्रतिदिन भीड़ का सैलाब दिखाई पड़ता है और कहा जाता है कि खाटू श्याम जी के दर्शन मात्र से ही भक्तों के संकट और दुःख क्षण मात्र में कट जाते हैं और यही वजह है कि उन्हें हारे का सहारा कहा जाता है।

भारत देश के अंदर ऐसे अनेकों मंदिर हैं सभी मंदिरों की मान्यताएं अलग-अलग हैं ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है जिस मंदिर को खाटू श्याम जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है बाबा श्याम का यह मंदिर अदभुत अनोखा और चमत्कारी है कहा जाता है कि जो भक्त एक बार बाबा के दर्शन कर लेता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

आईए जानते हैं खाटू श्याम जी के मंदिर का रहस्य और उनके बारे में।

खाटू श्याम जी पांडवों में से एक भाई भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे हैं। खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है बचपन से ही वह महान योद्धा थे। कहां जाता है कि भगवान शिव से इन्हें तीन अभेघ वाण मिले थे। इसी वजह से इन्हें तीन वाण धारी भी कहा जाता है।

आईए जानते हैं खाटू श्याम जी का तीन बाण धारी का रहस्य

खाटू श्याम जी के इन तीन बाणो में इतनी ज्यादा शक्ति थी कि महाभारत का पूर्णतया युद्ध मात्र उनके तीन बाणो से ही खत्म किया जा सकता था। इतना ही नहीं केवल यह तीनों बाण पूरी सेना का विनाश कर वापस अपने तरकश में आ सकते थे। पहला बाण चलता तो शरीर पर मृत्यु चिन्ह बन जाते। दूसरा बाण चलता तो उनका बध हो जाता तीसरा बाण चलता तो सृष्टि का विनाश हो सकता था। वही भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे बर्बरीक कोई यह वरदान मिला हुआ था कि वह जिसपक्ष की तरफ से भी लड़ेंगे उस पक्ष की जीतहोगी। लेकिन महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक अपनी मां को वचन दे चुके थे कि जिस पक्ष की हार होगी वह उस पक्ष से लड़ेंगे।

युद्ध में कौरव पक्ष की हार हो रही थी इसीलिए बर्बरीक ने निर्णय लिया कि वह कौरव पक्ष की ओर से ही लड़ेंगे। इसीलिए उन्होंने कौरवों के पक्ष से लड़ना शुरू कर दिया और जिसकी वजह से उन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता है इतना ही नहीं जब श्री कृष्ण भगवान ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो उन्होंने कहा कि यह कोई बालक सामान्य बालक नहीं है। और श्री कृष्ण भगवान ने सोचा कि यदि यह बालक कोरवो कि तरफ़ से लड़ता रहेगा तो धर्म का नाश हो जाएगा।

मान्यता है कि युद्ध के दौरान श्री कृष्ण भगवान ने बर्बरीक को बुला लिया और उनसे कहा की आप अधर्म का साथ क्यों दे रहे हैं तब बर्बरीक ने कहा कि मैं पहले ही अपनी मां को वचन दे चुका हूं कि मैं हारने वाले की तरफ से लडूंगा तब श्री कृष्ण भगवान ने बर्बरीक से कहा कि आपका इन बाणो में कितनी शक्ति है तब बर्बरीक ने अपने बाण की शक्ति का प्रदर्शन करते हुए पेड़ के सभी पत्तों को एक बाण से भेद दिया था इसके बाद श्री कृष्ण जी के पैर के पास बाण घूमता रहा तब बर्बरीक ने कहा कि आप अपना पेर हटाइए यहां पर कुछ तो है जिसकी वजह से मेरा बाण यहां पर घूम रहा है श्री कृष्ण भगवान ने सोचा कि अगर यह बालक यानी कि बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ाई लड़ेगा तो धर्म का नाश हो जाएगा अधर्म की जीत होगी। इसीलिए श्री कृष्ण भगवान ने बर्बरीक से कहा कि क्या मैं आपसे कुछ मांग सकता हूं। बर्बरीक ने कहा कि आप मांग ले।

तब श्री कृष्ण भगवान ने बर्बरीक से शीश का दान मांगा था लेकिन बगैर संकोच किये बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण जी को थमा दिया था। इसीलिए खाटू श्याम जी को लखदातार और शीश का दानी भी कहा जाता है। तब श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक को वरदान दिया था की है बर्बरीक आप कलयुग में बाबा श्याम के नाम से यानी कि मेरे ही नाम से जाने जाएंगे। इससे आगे की कहानी हम आपको पार्ट दो में बताएंगे।

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