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बीएससी का छात्र क्यों वना पूर्वांचल का डॉन बाहुबली नेता बृजेश सिंह की कहानी

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जब-जब यूपी के बाहुबलियों की बात होती हो डॉन की बात होती हो माफिया की बात होती हो तो बृजेश सिंह का नाम पीछे कैसे रह सकता है आज कहानी बृजेश सिंह उर्फ अरुण सिंह की जो सियासत की दुनिया में एमएलसी बन बैठा था

Up mafiya list:– जब जुर्म की दुनिया की बात होती हो, और जुर्म की दुनिया में भी उत्तर प्रदेश की बात होती हो,या यह कहें कि कुख्यात अपराधियों की बात होती हो, तब तब बाहुबली माफियाओं और नेताओं का नाम सामने अक्सर आता ही है, वह नाम चाहे अतीक अहमद का रहा हो या मुख्तार अंसारी ऐसे ना जाने कितने नाम उत्तर प्रदेश में जुर्म की दुनिया से नेता बनने तक की कहानी आती है लेकिन आज एक हम ऐसे डॉन की कहानी बताएंगे जो वाकई इन सब से हटकर है और वह यूपी में जब एमएलसी का चुनाव लड़ा था तो रिकॉर्ड मतों से उसने जीत हासिल की थी 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे हार का मुंह देखना पड़ा था यह वह डॉन है जिसका आतंक उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी फैला हुआ था आज कहानी बताएंगे हम आपको माफिया डॉन बृजेश सिंह की

सवाल आखिर कौन है बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार?

बृजेश सिंह का जन्म वाराणसी के एक गांव में हुआ था जैसे-जैसे बृजेश सिंह बड़ा हुआ वैसे ही वैसे पढ़ाई लिखाई में उसने काफी मेहनत की, पिता रवींद्रनाथ चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर कुछ बने पिता रविंद्र सिंह राजनीति में सक्रिय थे और इलाके के रसूखधर लोगों में गिने जाते थे बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी अच्छे थे 12वीं की परीक्षा उन्होंने 1984 में बहुत अच्छे अंक हासिल करके पास की, उसके बाद बृजेश ने बीएससी की पढ़ाई करने के लिए यूपी के कॉलेज में दाखिला ले लिया और वहां भी बृजेश सिंह का नाम होनहार बच्चों की श्रेणी में आता था

यहां से शुरू होती है बृजेश सिंह के डॉन बनने की कहानी

बृजेश सिंह का अपने पिता रविंद्र सिंह से गहरा लगाव था, बृजेश सिंह के पिता चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिखकर एक अच्छा इंसान बने कोई अफसर बने, लेकिन कहते हैं ना की किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था, एक दिन आता है 27 अगस्त 1984 वाराणसी के धौरहरा गांव में ही बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह की हत्या कर उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाता है, कहा जाता है कि रविंद्र सिंह के विरोधी हरिहर सिंह और पांचु सिंह ने साथियों के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया था पिता रविंद्र सिंह की हत्या होने के बाद बृजेश सिंह पूरी तरह से टूट चुके थे। और मन में यह ठान लिया था कि वह अपने पिता की मौत का बदलाव अवश्य लेंगे,वहीं बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना थी ही, और वह केवल यह घात लगाए बैठे थे कि कैसे और वह दिन कब आए जब वह अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतार दें, समय गुजरता है और दिन आता है 27 मई 1985 यह वही दिन था जब रविंद्र सिंह के हत्यारा हरिहर सिंह अपने घर के बाहर बैठा था तभी बृजेश सिंह सॉल ओढ़कर जाते हैं और हरिहर सिंह के चरण स्पर्श करते हैं इससे पहले की हरिहर सिंह कुछ समझ पाता हरिहर को बृजेश सिंह के द्वारा सॉल उड़ा दिया जाता है और अगले ही पल बृजेश सिंह के द्वारा हरिहर सिंह को गोली मार दी जाती है जिसमें हरिहर सिंह की मौत हो जाती है और यही से बृजेश सिंह का क्राइम का ग्राफ बढ़ने लगा

बृजेश सिंह के द्वारा यही था चर्चित कांड

बृजेश सिंह ने अपने पिता की मुख्य आरोपी हरिहर सिंह को तो मौत के घाट उतार दिया था लेकिन अभी भी बृजेश सिंह का गुस्सा शांत नहीं था और उसके पीछे की वजह थी उन लोगों को तलाश करना जो उसके पिता की हत्या में हरिहर सिंह के साथ शामिल थे और इसी इंतजार में समय गुजरता है दिन आता है 9 अप्रैल 1986 का अचानक बनारस के सिकरौरा गांव में गोलियों की तड़पाहट गूंज उठती है हर तरफ दहशत का माहौल बन चुका था बाद में पता चलता है कि बृजेश सिंह ने अपने पिता की हत्या में शामिल रहे पांच लोगों की एक साथ गोलियों से भूनकर हत्या कर दी है, इस वारदात को अंजाम देने के बाद बृजेश पहली बार गिरफ्तार होते हैं और यही वह सामूहिक हत्याकांड था जिसने बृजेश का खोफ लोगों के दिलों और दिमाग में पैदा कर दिया था यहीं से बृजेश सिंह की छवि माफिया डॉन की बन गई थी लोगों में बृजेश सिंह के नाम का खोफ बढ़ने लगा था।

बृजेश सिंह के द्वारा अब शुरू होती है ठेकेदारी वसूली और रंगदारी

बृजेश सिंह अपनी ताकत को बखूबी समझ चुके थे,उसने ठेकेदारी और रंगदारी जैसे ना जाने कितने काम शुरू कर दिए थे कहते हैं कि जब आप क्राइम की तरफ बढ़ोगे तो वहां से केवल दो रास्ते सामने आते हैं एक रास्ता मौत का होता है तो दूसरा रास्ता जेल का होता है शायद ही इस रास्ते से पीछे हटना मुमकिन हो और यह बात बृजेश सिंह के शायद दिमाग में घर कर गई थी, अब शुरू होती है बृजेश सिंह की दुश्मनी बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी से, जो बृजेश को काफी महंगी भी पड़ी थी, शायद बृजेश सिंह को मुख्तार की ताकत का अंदाजा ही नहीं था और यही वह गैंगवार भी हुआ जिसमें उसके भाई का मर्डर भी हुआ था बृजेश सिंह ने पश्चिम बंगाल, बिहार, मुंबई और उड़ीसा में अपना नेटवर्क बना लिया था और वह अब अंडरग्राउंड हो चुका था लेकिन अंडरग्राउंड होते हुए भी वह क्राइम की दुनिया में एक्टिव था

लिया था भाई की मौत का बदला

यह वही दौर था जब मकनू सिंह और साधु सिंह का गैंग तेजी से उभर रहा था साल 1988 के अक्टूबर में साधू सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र को मौत की नींद सुला दिया था राजेंद्र बृजेश सिंह के दोस्त त्रिभुवन सिंह का भाई था वही हेड कांस्टेबल राजेंद्र की हत्या के मामले में कैंट थाने पर भी साधु सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर के रहने वाले भीम सिंह को नाम जद किया गया था और अब फिर से शुरू होता है बृजेश सिंह और मुख्तार गैंग का आमना-सामना त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह पुलिस की वर्दी पहनते हैं और गाजीपुर के एक अस्पताल में साधू सिंह का इलाज चल रहा था इसी दौरान बृजेश सिंह व त्रिभुवन सिंह ने साधू सिंह को गोलियों से छलनी कर दिया था

यहां से मिलती है बृजेश सिंह को राजनीतिक शरण

साधू सिंह की हत्या के बाद से बृजेश सिंह की दुश्मनी सीधी सीधी मुख्तार अंसारी से थी, क्योंकि साधू सिंह गैंग मुख्तार अंसारी के लिए काम करता था जबकि पहले से ही बृजेश सिंह के लिए मुख्तार अंसारी एक बड़ी चुनौती बन रहा था, लेकिन इस केस के दौरान मुख्तार अंसारी से और भी दुश्मनी बढ़ चुकी थी, अब जरूरत थी बृजेश सिंह को राजनीतिक शरण की, तभी बृजेश सिंह ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय का दामन थामा था राजनीतिक संरक्षण मिलने से बृजेश को कुछ तो राहत मिली थी लेकिन फिर भी मुख्तार गैंग के लोग लगातार बृजेश सिंह का पीछा कर रहे थे वहीं बृजेश सिंह ने मुख्तार पर काफी बार शिकंजा कसने की कोशिश की और इसका नतीजा यह निकला था जब कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी।

शुरू होता है बृजेश सिंह का सियासी सफर

अब बृजेश सिंह का मन बनता है कि वह क्यों ना चुनाव लड़े और यह वही साल था 2015 का,चुनाव होता है एमएलसी का, और बृजेश सिंह एमएलसी चुनाव के लिए तैयारी करता है और रिकार्ड मतों से जीत हासिल करता है लेकिन इसके बाद साल 2017 के विधानसभा चुनाव में वह भारतीय समाज पार्टी से सैयद राजा विधानसभा से चुनाव लड़ा था लेकिन तब बृजेश सिंह को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा यानी कि बृजेश सिंह चुनाव हार चुके थे

चर्चित रहा था उसरी चट्टी हत्याकांड

मुख्तार अंसारी के काफिले पर 15 जुलाई 2001 को उसरी चट्टी में जोरदार हमला होता है उस हमले में सरकारी गनर और मुख्तार अंसारी के एक समर्थक की मौत हो गई थी इसके अलावा एक अन्य व्यक्ति मनोज राय भी इस हमले में मारा गया था और बाद में मनोज राय के पिता ने इसे हत्याकांड बताते हुए समय-समय पर कई शिकायती पत्र भी पुलिस प्रशासन को भेजे थे हत्याकांड का मुख्य आरोपी बृजेश सिंह है, अपने साथियों के साथ मिलकर मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला करने का आरोप लगा था बृजेश पर, कहा जाता है की पहली बार इस हमले में एक-47 का इस्तेमाल किया गया था

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